राज काज में लोक लाज!
देश का ये राज काज,
जैसे चल रहा आज,
छोड कर लोक लाज,
जुटा रहे हैं धन आज!
नित बढ रहे हैं दाम,
साग और भाजी के,
नित बढ रहे हैं दाम,
तेल और दाल के,
टूट रही है कमर,
मंहगाई की मार से,
चल रहा है जैसा आज,
छोड़कर लोक लाज!
धडी भर देकर अनाज,
सिर पर उठा रखा है ताज,
प्रचार तंत्र से,
भरी पडी हैं सडकें आज,
खूब धूम मचाई थी,
फ्री मेें वैक्सीन की बात,
नौकरियां छुट गईं,
बन्द हुऐ कामकाज,
दर दर को भटक रहे,
नौ जवान सड़कों पे आज!
फ्री के अनाज से,
कब तक मिटेगी पेट कि ये आग!
चल रहा है ये जैसा राज काज,
छोड़कर लोक लाज,
उठा रखा है सिर पे ताज,
कैसा है ये राज काज,कैसा है ये राज काज।