लोकगीत (कजरी)
कजरी
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शिव जी के लागल समधिया हो,
देखते खिसियाई गइली गऊरा।।
बेरा-कुबेरा शिव के तनिक ना बुझाला।
हरो घरी पीसत भॅंङिया हथवा पिराला।।
बाकी कुछू रूचे ना अड़भॅंङिया हो
पीसत खिसियाई गइली गउरा।
शिव जी के……………………।।१।।
जोगिया के भेस भावे रहे के मड़इया।
धमवा पहाड़े ऊॅंच बिकट चढ़इया।।
दूनू ओर परे गहिर खइया हो ,
निहारत खिसियाइ गइली गऊरा।
शिव जी……………….।।२।।
सावन महीना पावन धाम भीर भारी।
मनवा में आस लिहले आवे नर-नारी।।
जागें सुनत गोहरइया हो ,
बहुत खिसियाइ गइली गऊरा।
शिवजी के…………..….।।३।।
**माया शर्मा,पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)**