लॉक डाउन ने सबको अपने अपने काम मे लगा दिया
आज से 20 साल पहले कोई भी व्यक्ति बेरोजगार नही था । वरन यहाँ तक कि “बेरोजगारी” शब्द से ही लोग वाकिफ नही थे । सभी के पास अपना अपना खानदानी काम था । जैसे एक मिठाई बनाने वाले के बच्चे भी मिठाई ही बनाते थे और उस कला को आगे अपने वरसानो को भी सिखाते थे, इस सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था । परंतु जैसे ही ये आधुनिक जमाना आया सब कुछ बदल सा गया । आधुनिकता के तले लोग सब कुछ भूलते जा रहे । यहां तक कि मानवीय मूल्य भी हाशिये पर आ गए, इंसानियत विलीन होती प्रतीत हो रही है ।
लेकिन जब से ये लॉक डाउन लगा सब अपने वास्तविकता में आ गए है । जो शहर में बड़े ठाट बाट से ठसक से रहते थे वो भी गांव आ गए है । जिनका जो खानदानी काम था उसमे शहरी बाबू हाथ बंटाने लग गए है ।
मैं स्वयं भी अपने काम मे लग गया हूँ । लॉक डाउन के दरम्यान पता चला कि मेरे में जितने भी कामगार काम करते है वो एकदम निश्चिंत होकर करते है, कोई काम का इतना दबाव नही रहता है । सब लोग एकदूसरे से हँसी मजाक करते हुए अपनी मजदूरी का कार्य करते है । निस्वार्थ भाव से एकदूसरे का ख्याल रखा जाता है ।
इसी लॉक डाउन में हमारे गांव में पंचायत द्वारा पौधरोपण हेतु गड्ढे खोदने का काम निकला था । जिसमे आप जितने गड्ढे खोदेंगे उतने दाम मिलेंगे । परिणामस्वरूप मैं भी शौक से गेती, कुदाल लेकर चल दिया । पहले तो मैंने ऐसा काम किया नही था फिर भी लोगो के साथ प्लांटेशन के लिए चल दिया ।
सभी लोगो ने 12 बजे तक औसतन 10 से 12 गड्ढे खोद दिये परंतु मुझसे तीन ही गड्ढे खुदे वो भी टेढ़े मेढे आधे अधूरे । मैं बहुत थक चुका था, शरीर से पसीने की धारा रुकने का नाम ही नही ले रही थी । शाम को जब सभी के गड्ढे खुद चुके थे तभी मेरे गाँव के लोगो ने देखा कि मुझसे केवल तीन ही गड्ढे खुदे है तो उन सबने मेरे पास आकर गड्ढे खोदने लगे । लगभग सबने मिलकर 14 से 15 गड्ढे खोद दिए थे । और जब सचिव साहब हिसाब लिखने के लिये आये तो मेरे नाम पर लोगो ने 15 गड्ढे लिखवा दिए । मैं अवाक सा रह गया । जहाँ शहर में लोग एक दूसरे को पीछे धकेलकर खुद आगे बढ़ जाते है । दुसरो की परवाह भी नही करते । स्वार्थवश अपना ही फायदा सोचते है । लेकिन गांव आकर मुझे लगा कि वास्तव में गांव में ही श्रेष्ठ भारत बसता है । जहां एक दूसरे के प्रति प्रेम है, सादगी है, सहयोग की भावना है, निःस्वार्थ सेवाभाव है, इंसानियत है ।
मुझे अपने गांव आकर पता चला कि यहाँ एक दूसरे के आपसी संबंध कितने मधुर होते है । पूरा गांव अपने आप मे एक परिवार की तरह ही एक दूसरे के सुख दुख में आगे आता है । किसी भी समस्या का समाधान सारे लोग इकट्ठे होकर बहुमत से निकालते है । सच मे मुझे यहाँ आकर एक अलग ही अनुभव प्राप्त हुआ ।
अंत मे निम्न पंक्तियो से मैं कहना चाहता हु की सभी के सहयोग से कोरोना जैसी महामारी से निजात पाने के लिए भी ग्रामवासी बहुत जागरूक है । वे बखूबी सरकार के आदेशों का पालन कर रहे है ।
ले मशाले चल पड़े है, लोग मेरे गाँव के ।
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गाँव के ।।
© गोविन्द उईके