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18 May 2022 · 1 min read

*लॉकडाउन- 8 ( दोहे )*

लॉकडाउन- 8 ( दोहे )
———————————————–
( 1 )
शटर दुकानों का उठा ,जैसे हुआ प्रभात
अंदर थीं धूलें भरी , गहरी काली रात
( 2 )
पूँजी घर की खा रहे ,कब तक चलता काम
बेकारी सबसे बुरी ,सदा रही बदनाम
( 3 )
चिड़िया फिर उड़ने लगी ,कौवा बोला काँव
तपती जेठ दोपहरी , ठंडी – ठंडी छाँव
( 4 )
कब तक घर पर बैठते ,खाली हो बेकार
लगे उठाने सेठ जी , मजदूरों का भार
( 5 )
नौकर – चाकर अब भला ,किसके होंगे पास
चले पुराने दिन गए , सबको है एहसास
( 6 )
दो गज की दूरी रखो ,गज की एक दुकान
रमुआ बैठा सोचता , मुश्किल में है जान
( 7 )
खुली दुकानें तो हुई ,मुश्किल की शुरुआत
पता नहीं किस से मिले , कोरोना सौगात
( 8 )
खतरे सौ-सौ दिख रहे , बचकर चलना मित्र
अभी नहीं कुछ दीखता ,जग का अच्छा चित्र
—————————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451

Language: Hindi
96 Views
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