ले चल साजन
शीर्षक: ले चल साजन
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
ये जो मेरी पलकें है झुकी,
तेरे उठते लिबास का कमाल है।
ढंग जो है बदला,तेरी चाहत का बवाल है।
मैं। मैं न रही,ये तेरी बेपनाह मोहब्बत का कमाल है।
पांव मेरे टिकते नहीं अब किसी ठांव में।
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
जन्मों की प्यासी, फिरूँ बनके मीरा हो जैसी,
ये आते -जाते कुंवारे,है बड़े बेशरम करे दिलजले इशारे,
पर मेरी पायल की रुन-झुन सुनाये तेरी चाहत की धुन,
कदम नहीं पड़ते जमीं पर ,जब छुप जाती हूँ तेरी वाहों में,
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
आशिकों की है भरमार यहाँ,
सूरत बनी है ,मेरी दुश्मन जहाँ,
मिज़ाज गर्म हुए आशिकों के यहाँ,
मैं तो हारी तेरे प्यार में वारी,
दिल लगता नहीं अब इस गाँव में,
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
ये हुस्न की दौलत बनी मेरी जान की दुश्मन,
तेरा वो छुप-छुप कर मिलना,
पड़ रहा अब मेरी सखी को सिलना,
अमानत तेरी बचाती फिरूँ,
कभी यहाँ कभी वहाँ तेरे उस अंजान गांव में,
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
ये तड़फ ये अग्न उस पर तेरी दूरी,
रूह में जब गये है उतर,
फिर ये कैसी मजबूरी ,
सांसों में तेरी घुल जाऊं घर बना लूं तारों के गांव में,
ले चल साजन मुझे बादलों की छाँव में।
लेख राज “माही”
,