लेख
गीता ज्ञान (हास्य लेख)
नारायण -नारायण भजते हुए, देव ऋषि नारद पृथ्वी लोक आ पहुँचे।यहां मानव का दुख दर्द,अस्पतालों में चीख पुकार, नये रोग का प्रकोप व मशीनों से आक्सीजन की पूर्ति होती देखकर काफी विचलित हो उठे।सही स्थिति जानने के लिए, अपना वेष बदलकर मनुष्यों की भीड़ में चले गए ।देखते हैं कि एक शव को कंधे देने वाले कोई नहीं है, सभी शव वाहन की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।नारद जी ने एक सज्जन से पूछ लिया, भाई इनके परिवार में कोई नहीं है क्या? नहीं भाई, इनका परिवार तो भरापूरा है लेकिन इनकी मौत कोरोना से संक्रमित मानी जा रही है ,इसलिए शासन के दिशा निर्देश पर अंतिम संस्कार किया जावेगा ।ओह,तो इसके अंतिम संस्कार के बाद के क्रिया कर्म? भाई ,जब गंगा जाना, देवालय जाना व सामाजिक रश्म आदि सभी कुछ पर रोक है तो मात्र औपचारिकता ही होगी।मंदिर आने जाने पर रोक की बात जानकर नारद जी अचंभित हो गये ।यह क्या, भगवान पर भी प्रतिबंध, अवश्य कोई प्रभु लीला चल रही है ।अपनी शंका समाधान के लिए विष्णु लोक का गमन किया ।
विष्णु लोक में नारायण नारायण की आवाज सुनकर, भगवान नारायण ने स्वागत करते हुए पूछा कि महात्मन बड़े विचलित लग रहे हैं,आइये, क्या बात है ।नारद ने कहा “”प्रभु घोर अनर्थ हो रहा है, पृथ्वी लोक पर “। मानव दर दर की ठोकर खा रहा है ।महामारी ने कहर से ढा दिया ।लोग अपनों को कंधा नहीं दे पा रहे ।कोई सुनने वाला नहीं है ।आपके व सभी देवताओं के मंदिर बंद पड़े है ,लगता है सभी देवताओं ने पृथ्वी लोक त्याग दिया है । प्रभु कुछ उपाय कीजिए, जिससे मानव जाति महामारी से मुक्त हो सके ।
नारायण ने मुस्कराते हुए कहा, नारद क्रिया की प्रतिक्रिया का नियम विधाता का वनाया हुआ है ।उसी के आधार पर कालचक्र का निर्धारण हुआ करता है ।जैसे अंधेरा से बचने दीपक जलाया जाता तो, प्रतिक्रिया स्वरूप सूर्य देव का उदय होता है ।देव शक्तियों के लिए अक्षत, पुष्प, भोग दिया जाता है तो प्रतिक्रिया स्वरूप सुख, सौभाग्य, अनुग्रह स्वयं मिलता है ।नारद ने बीच में कहा, प्रभु मैं आपके द्वारा कहीं बात समझा नहीं? स्पष्ट करें प्रभु ।
भगवान बोले नारद-
भावो विदते देवा
तेरा तुझको अर्पण
जिसकी रही भावना जैसी
यह वाक्य क्या कहते हैं । देवता भाव के अधीन है, जो भगवान को अर्पण करेगा वही मिलेगा , जिस भाव से श्रृद्धा रखेगा उसी तरह की प्रतिक्रिया स्वरूप फल देने प्रकृति मजबूर होगी , न चाहते हुए भी देना पड़ता है यह शाश्वत नियम है ।नारद जी ने निवेदन किया, प्रभु मानव ने ऐसा क्या किया, जो कष्ट पा रहा है ।नारद यह सब तो समय के साथ समझ आ जावेगा लेकिन सोचो मंदिर के घंटा, झांझ, झंनकर मानव श्रद्धा से नहीं मशीन से बजते है तो विश्वास मशीन पर हुआ ।पौष्टिकता के लिए अन्न पर भरोसा नहीं, मांस पर व जीव हत्या पर हुआ ।रोग निवारण हेतु प्रकृति की शरण छोड़कर अप्राकृतिक साधनों पर हुआ । देवता की पूजन आरोग्य प्राप्ति के भाव से नहीं धन, दौलत, यश की चाह के लिए हो गई ।तीर्थ सेवन भक्ति भाव से नहीं पर्यटन, दर्शन व मनोरंजन के लिए हो गई ।इसलिए मानव लम्बे समय से जिस भावना को लेकर व्यवहार कर रहा था, उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप फल मिलना शुरू हुआ है ।मशीनों पर विश्वास होने से मशीनी जाॅच, मशीनी उपचार, मशीनी प्राणवायु मिल रही है ।जीव हत्या पर श्रृद्धा रखने के कारण मौत का तांडव देख रहा है ।नारायण, नारायण, नहीं प्रभु, कोई समाधान कीजिए ।मानव माया के वशीभूत होकर भटक गया है प्रभु, परन्तु आप का ही अंश व आपका परम प्रिय भी तो है, सुधारिए प्रभु ।
नारायण ने मुस्कराते हुए कहा- ऋषि श्रेष्ट, विनाश नहीं, सुधार प्रक्रिया ही विधाता द्वारा संचालित हो रही है ।इसलिए मेरे इस संदेश को पृथ्वी लोक लेकर जाओ,मानवता के गुण अपनाने का समय आ गया है ।नारद वीणा बजाते हुए गाने लगते हैं ।
जो जैसा कर्म करेगा
वैसा फल देगे भगवान
यही गीता का ज्ञान ।
जो तू अपना भला चाहता
सुधर जा इंसान
यही गीता का ज्ञान ।
राजेश कौरव सुमित्र