कृपा।
विषय-कृपा।
शीर्षक-किस्मत की कृपा।
कृपा करो हे भगवान,
ये कहते-कहते जिंदगी कट गई।
न हुई कोई कृपा उसकी,
जिंदगी जीने से हट गई।
कृपा होगी हम पर,
जब हम ये सोचते हैं।
अपने स्वप्न-आसमां के तारें,
तब खुद ही नोचते हैं।
तड़पी हूँ मैं भी बहुत,
रोई जिंदगी आपकी भी।
पर कब किसी ने दुःख की पीर माफ की?
दर्द से मैली जिंदगी…
कब उस भगवान ने साफ की?
नाइंसाफी ही रही जिंदगी,
कब बनी जिंदगी इंसाफ की?
कब तक,”प्रिया”भ्रम में ही रहेगी?
होगी कृपा उस भगवान की मुझ पर,
ये सोचती रहेगी?
न चाहती अब कृपा भगवान की मैं,
न चाहती कृपा किसी इंसान की।
अगर कृपा चाहनी ही है,
तो चाहूँ कृपा किस्मत के जहान की।
कृपा किस्मत की होगी,
तो ख़ुशी मिलेगी।
न रोएगी जिंदगी;
जब जिंदगी की जिंदगी,
किस्मत से मिलेगी।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
सर्वाधिकार सुरक्षित