लू
आ ही गई उमस भरी गर्मी ।
खोती चली जा रही नमी और नर्मी ।
वो दोपहर की है अब लू चली ।
हवाओ का झोंका गर्म हुआ अब ।
सबका माथा टनक रहा अब ।
पसीना तरबतर टपक रहा अब ।
सरोवरे का जल भी ।
हिलकोरे मार रहा सब ।
नित -नित जल सब सूख रहा अब ।
सोएं है सब घर के प्राणी ।
कुछ घूम रहे आम्र बगिया मे ।
पंखे से हवा अब है गर्म आती ।
जो तो सबको बहुत तङपाती ।
छत भी अब तप रहा ।
सूर्य की ज्वलंत किरणो से ।
वातानुकूलित (AC) अब तो मेरा खपरैल ही बना ।
ठण्डा पूरा अंग -अंग रहा ।
छोङ दिया अब पक्के महल को ।
राहत मिलती अब घास-फूस कच्चे ही घर मे ।
प्रशीतक ( फ्रीज ) नही तो है हुआ क्या ।
घङा ही है अब प्रशीतक बना ।
कंठ तृप्त हो जाता इस नीर से ।
गुङ -नींबू घोल कर रस बनाता ।
बेल का शर्बत रोज पिलाता ।
बेस्वाद लगे कोकाकोला, स्पराइट, माजा ।
पाएगा न ये मट्ठा, दूध का दाजा ।
आम फूंजकर पन्ना बनाया ।
निर्जलीकरण को दूर भगाया ।
ककङी, तरबूज, खरबूज से ।
है अब सबका मन भर जाता ।
लू से बचने को फिर देखा ।
कोई बताया होगा सोखा ।
प्याज -लहसुन सब है टांग दिए ।
अपने मुख्य द्वार पर डोरो से ।
लू से बचने के सब उपाय किए ।
सोएं है सब नहा -धोके ।
बङी तंग से ये गर्मी लगती है ।
नदी, तालाब, नहर मे रोज डुबकी लगती है ।
ठण्डी मे ये गर्मी गुम सी कही थी ।
सबसे प्यारा मौसम बसंत है ।
जिसमे ज्यादा गर्म न ठण्ड है ।
ऋतुराज तभी तो इसको कहते ।
पतझड़ के बाद यही है ।
हरियाली का नाम यही है ।
घर मे ही रहो सब दोपहर मे ।
होंठ फटने वाले इस लू के कहर मे ।
भूख न लगती क्यों न उनको ।
बेचैनी से क्यूं होती है ।
और घूमो अब लू के दोपहर मे ।
ये सब बाबू लू का असर है ।
बच कर रहे सब प्राणी ।
यही कवि आनंद का कथन है ।
❤❤Rj Anand Prajapati ❤❤