लूटकर हक़ लिया कीजिये
इश्क़ यूँ आप खरा कीजिये
पत्थरों को ख़ुदा कीजिये
हद तुम्ही हो नज़र की सनम
यूँ न पर्दा किया कीजिये
होश बाकी रहे ही नही
इस कदर क्या नशा कीजिये
रौशनी गर नही महफ़िल में
शम्मा बनके जला कीजिये
दुश्मनी की रविश है अलग
इश्क़ को ना फ़ना कीजिये
दुश्मनों में गिनो शौक से
जां मगर कुछ तो कहा कीजिये
रूह का बोझ उठता नही
आप भी कुछ दुआ कीजिये
मान ले बात मुमकिन नही
रोज फिर भी मिला कीजिये
माँगने से मिला है किसे
लूटकर हक़ लिया लीजिये
– ‘अश्क़’