लाचार बूढ़ा बाप
जो देता था हर पल घर में खुशियाली,
जिसके दम पर खिली हुई थी घर की हरियाली,
आज वही लाचार खड़ा है खुशियों की तलाश में,
क्या बुरी हालत है ईश्वर धर के प्रधान की।
ऐसा तूफान उठा जीवन में ,
दिल के टुकड़े टुकड़े बिखर गए,
आखिर उस बुड्ढे की बहू के संग,
बेटा उसका आंगन बिखेर गया,
क्या दुखत हालत है ईश्वर एक बूढ़े बाप की।
बेटे की शादी में इतना सुद लिया कि,
सुद चुकाते चुकाते खुद की सुध भूल गया,
सावन के महीनों में पतझड़ सा सूख गया,
परिवार की भूख जो रोज मिटाता था,
कह नहीं पाता आज किसी को,
सरेआम बाजारों में जब भूखे ही सो जाता है।
किसी को बीवी की चिंता है किसी को अपने स्वार्थ की,
यह लड़ाई कौन लड़ेगा बूढ़े बाप के हालात की,
फट गया कलेजा निकल गए आंसू,
जब बिना कफन के पगडंडी पर निकली अर्थी बाप की,
बेटे का कंधा नहीं मिल पाया बाप की आर्थी के समान का,
क्या दुखत हालात है ईश्वर उस बूढ़े बाप के।
© जसवंत लखारा
गाव:- हरजी , जालोर (राजस्थान)