लड़ी दामिनी ने निर्भय ने, सबकी एक लड़ाई (गीत)
लड़ी दामिनी ने निर्भय ने, सबकी एक लड़ाई (गीत)
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लड़ी दामिनी ने निर्भय ने, सबकी एक लड़ाई
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(1)
याद आ रहा उसका चेहरा, जिसको कभी न देखा
सहमी-सिसकी टूटी आखिर जिसकी जीवन रेखा
अभी-अभी थी मुस्काई , देकर जो गई रुलाई
लड़ी दामिनी॰ ॰ ॰
(2)
पहन मुखौटे इंसानों के क्रूर भेड़िये रहते
दिखने-भर के कारण ही यह खुद को मानव कहते
तोड़ो इनके दाँत,नहीँ वरना होगी भरपाई
लड़ी दामिनी ॰ ॰ ॰
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451