लगे रहिये जब तक है ये मुफ़लिसी
122 + 122 + 122 + 12
लगे रहिये जब तक है ये मुफ़लिसी
बढ़े चलिये जब तक है ये ज़िन्दगी
उजाला भी सोया हुआ है यहाँ
जगा करिये जब तक है ये चाँदनी
कि आदत नहीं है सुधर जाएँ हम
ज़रा जगिये जब तक है ये गन्दगी
जहां में हमेशा रहे अम्न अब
दुआ करिये जब तक है ये आदमी
नहीं मिट सकेगी बुराई कभी
भला करिये जब तक है ये बन्दगी