रोला छंद. . . . माँ
रोला छंद. . . . माँ
देती है सन्तान, आज तो दर्द घनेरे ।
मात – पिता से दूर , चैन के हुए सवेरे ।
ममता की अब आँख, बहाती झर-झर पानी ।
घर – घर की है आज,जगत में यही कहानी ।
चौखट पर माँ बैठ , पुत्र की राह निहारे ।
कैसे दे आवाज , आँख से बहते धारे ।
क्या जाने सन्तान , दर्द क्या माँ का होता ।
अर्थ पाश में कैद , चैन से वो तो सोता ।
सुशील सरना / 16-11-24