रोमांटिक ग़ज़लें (भाग: एक)
(1.) मकड़ी-सा जाला
मकड़ी-सा जाला बुनता है
ये इश्क़ तुम्हारा कैसा है
ऐसे तो न थे हालात कभी
क्यों ग़म से कलेजा फटता है
मैं शुक्रगुज़ार तुम्हारा हूँ
ये दर्द तुम्हें भी दिखता है
चारों तरफ़ तसव्वुर में भी
इक सन्नाटा-सा पसरा है
करता हूँ खुद से ही बातें
क्या मुझसा तन्हा देखा है
(2.) तेरी तस्वीर को
तेरी तस्वीर को याद करते हुए
एक अरसा हुआ तुझको देखे हुए
एक दिन ख़्वाब में ज़िन्दगी मिल गई
मौत की शक्ल में खुद को जीते हुए
आह भरते रहे उम्रभर इश्क में
ज़िन्दगी जी गये तुझपे मरते हुए
कितनी उम्मीद तुमसे जुड़ी ख़ुद-ब-खुद
कितने अरमान हैं दिल में सिमटे हुए
फिर मुकम्मल बनी तेरी तस्वीर यों
खेल ही खेल में रंग भरते हुए
(3.) आप खोये हैं
आप खोये हैं किन नज़ारों में
लुत्फ़ मिलता नहीं बहारों में
आग काग़ज़ में जिससे लग जाये
काश! जज़्बा वो हो विचारों में
भीड़ के हिस्से हैं सभी जैसे
हम हैं गुमसुम खड़े कतारों में
इश्क़ हमको भी रास आया है
अब वो दिखने लगे हज़ारों में
झूठ को चार सू पनाह मिली
सच को चिनवा दिया दिवारों में
(4.) दिल में तेरे प्यार का
दिल में तेरे प्यार का दफ़्तर खुला
क्या निहायत ख़ूबसूरत दर खुला
वो परिन्दा क़ैद में तड़पा बहुत
जिसके ऊपर था कभी अम्बर खुला
ख़्वाब आँखों से चुरा वो ले गए
राज़े-उल्फ़त तब कहीं हम पर खुला
जी न पाए ज़िन्दगी अपनी तरह
मर गए तो मयकदे का दर खुला
शेर कहने का सलीक़ा पा गए
‘मीर’ का दीवान जब हम पर खुला
वो ‘असद मिर्ज़ा’ मुझे सोने न दे
ख़्वाब में दीवान था अक्सर खुला
(5.) कभी ख़याल किया
“आपने क्या कभी ख़याल किया”
रोज़ मुझसे नया सवाल किया
ज़िन्दगी आपकी बदौलत थी
आपने कब मिरा ख़याल किया
राज़े-दिल कह न पाए हम लेकिन
दिल ने इसका बहुत मलाल किया
ज़ोर ग़ैरों पे जब चला न कोई
आपने मुझको ही हलाल किया
है “महावीर” शेर ख़ूब तिरे
लोग कहते हैं क्या कमाल किया
(6.) आपको मैं
आपको मैं मना नहीं सकता
चीरकर दिल दिखा नहीं सकता
इतना पानी है मेरी आँखों में
बादलों में समा नहीं सकता
तू फ़रिश्ता है दिल से कहता हूँ
कोई तुझसा मैं ला नहीं सकता
हर तरफ़ एक शोर मचता है
सामने सबके आ नहीं सकता
शौहरत कितनी ही मिले लेकिन
क़र्ज़ माँ का चुका नहीं सकता
(7.) साधना कर यूँ सुरों की
साधना कर यूँ सुरों की, सब कहें क्या सुर मिला
बज उठें सब साज दिल के, आज तू यूँ गुनगुना
हाय! दिलबर चुप न बैठो, राज़े-दिल अब खोल दो
बज़्मे-उल्फ़त में छिड़ा है, गुफ़्तगूं का सिलसिला
उसने हरदम कष्ट पाए, कामना जिसने भी की
व्यर्थ मत जी को जलाओ, सोच सब अच्छा हुआ
इश्क़ की दुनिया निराली, क्या कहूँ मैं दोस्तो
बिन पिए ही मय की प्याली, छा रहा मुझपर नशा
मीरो-ग़ालिब की ज़मीं पर, शेर जो मैंने कहे
कहकशां सजने लगा और लुत्फ़े-महफ़िल आ गया
(8.) राह उनकी देखता है
राह उनकी देखता है
दिल दिवाना हो गया है
छा रही है बदहवासी
दर्द मुझको पी रहा है
कुछ रहम तो कीजिये अब
दिल हमारा आपका है
आप जबसे हमसफ़र हो
रास्ता कटने लगा है
ख़त्म हो जाने कहाँ अब
ज़िंदगी का क्या पता है
(9.) वो जब से ग़ज़ल
वो जब से ग़ज़ल गुनगुनाने लगे हैं
महब्बत के मंज़र सुहाने लगे हैं
मुझे हर पहर याद आने लगे हैं
वो दिल से जिगर में समाने लगे हैं
मिरे सब्र को आज़माने की ख़ातिर
वो हर बात पर मुस्कुराने लगे हैं
असम्भव को सम्भव बनाने की ख़ातिर
हथेली पे सरसों जमाने लगे हैं
नए दौर में भूख और प्यास लिखकर
मुझे बात हक़ की बताने लगे हैं
सुख़न में नई सोच की आँच लेकर
ग़ज़लकार हिंदी के आने लगे हैं
कि ढूंढों “महावीर” तुम अपनी शैली
तुम्हें मीरो-ग़ालिब बुलाने लगे हैं
(10.) चाँदनी खिलने लगी
चाँदनी खिलने लगी, मुस्कुराना आपका
देखकर खुश हैं सभी, दिल लुभाना आपका
है वो क़िस्मत का धनी, आपका जो हो गया
चाँद भी चाहे यहाँ, साथ पाना आपका
ख़ूब ये महफ़िल सजी, झूमने आये सभी
दिल को मेरे भा गया, गुनगुनाना आपका
आपको कैसे कहूँ, देखकर मदहोश हूँ
गूंजती शहनाई पर, खिलखिलाना आपका
जी लगाकर ही सदा, जब कहा उसने कहा
जी चुराकर ले गया, जी लगाना आपका
(11.) मुहब्बत का मतलब
मुहब्बत का मतलब इनायत नहीं
इनायत रहम है मुहब्बत नहीं
अदावत करो तो निभाओ उसे
कि दुश्मन करे फिर शिकायत नहीं
ग़मों से तिरा वास्ता है कहाँ
ग़मों की मुझे भी तो आदत नहीं
मुझे मिल गए तुम जो जाने-जिगर!
ख़ुदा की भी अब तो ज़रूरत नहीं
‘महावीर’ अब कौन पूछे तुम्हें
कि जब तुमपे कुछ मालो-दौलत नहीं
(12.) ये चाहत की दुनिया
ये चाहत की दुनिया निराली है यारो
कोई कुछ कहे, बस ख़याली है यारो
उमंगें हैं रौशन, जवाँ और रवाँ हैं
यहाँ रोज़ ही तो दिवाली है यारो
मुक़म्मल नहीं है कोई शय यहाँ पर
ये दुनिया अधूरी है, ख़ाली है यारो
किया याद ने उनकी तनहा मुझे फिर
मुसीबत फिर इक मैंने पाली है यारो
तमाशा दिखाया है ग़ुर्बत ने मेरी
ज़ुबाँ ख़ुश्क है, पेट ख़ाली है यारो
(13.) रह-रहकर याद
रह-रहकर याद सताए है
क्यों बेचैनी तड़पाए है
ओढो इस ग़म की चादर को
जो जीना तो सिखलाए है
चुपचाप मिरे दिल में कोई
ख़ामोशी बनता जाए है
क्या कीजै, सब्र का दामन भी
अब हमसे छूटा जाए है
वो दर्द मिला है ‘महावीर’
परवाज़े-तमन्ना जाए है
(14.) रातभर आपकी याद
रात भर आपकी याद आती रही
दिन ढले भी हमें जो सताती रही
फूल जैसा बदन हो गया आपका
कोई ख़ुशबू-सी भीतर समाती रही
दीप उम्मीद का जलता-बुझता रहा
दिल में तू ही मिरे झिलमिलाती रही
जिस तमन्ना से हम तुझको देखा किये
उम्रभर वो तमन्ना रुलाती रही
दर्दे-दिल को मिरे बाँटने के लिए
ज़िन्दगी इक लतीफ़ा सुनाती रही
(15.) मिरी नज़र में ख़ास
मिरी नज़र में ख़ास तू, कभी तो बैठ पास तू
तिरे ग़मों को बाँट लूँ, है क्यों बता उदास तू
लगे है आज भी मुझे, भुला नहीं सकूँ तुझे
कभी जो मिट न पायेगी, वही है मेरी आस तू
छिपी तुझी में तश्नगी, नुमाँ तुझी में हसरतें
लुटा दे आज मस्तियाँ, बुझा दे मेरी प्यास तू
वजूद अब तिरा नहीं, ये जानता हूँ यार मैं
मिरा रगों में आ बसा है, अब तो और पास तू
छिपाए राजे-ज़ख़्म तू ऐ यार टूट जायेगा
ग़मों से चूर-चूर यूँ, है कबसे बदहवास तू
(16.) तसव्वुर का नशा
तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है
नहीं मुमकिन मिलन अब दोस्तो से
महब्ब्त में बशर तनहा हुआ है
करूँ क्या ज़िक्र मैं ख़ामोशियों का
यहाँ तो वक़्त भी थम-सा गया है
भले ही खूबसूरत है हक़ीक़त
तसव्वुर का नशा लेकिन जुदा है
अभी तक दूरियाँ हैं बीच अपने
भले ही मुझसे अब वो आशना है
हमेशा क्यों ग़लत कहते सही को
“ज़माने में यही होता रहा है”
गुजर अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है
गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है
बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है
हमेशा गुनगुनाता हूँ बहर में
ग़ज़ल का शौक़ बचपन से रहा है
जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है
(17.) दिल मिरा जब
दिल मिरा जब किसी से मिलता है
तो लगे आप ही से मिलता है
लुत्फ़ वो अब कहीं नहीं मिलता
लुत्फ़ जो शा’इरी से मिलता है
दुश्मनी का भी मान रख लेना
जज़्बा ये दोस्ती से मिलता है
खेल यारो! नसीब का ही है
प्यार भी तो उसी से मिलता है
है “महावीर” जांनिसारी क्या
जज़्बा ये आशिक़ी से मिलता है
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