रोना आया
आज तो यह आलम है दिल का
कि हर बात पे दिल घबराया।
आहट भी कहीं हल्की सी हुई तो
हर बात पे रोना आया।
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आस्थाऐं ह्रदयों की चूर चूर
विश्वासों ने धोखा खाया
चहुंओर आग धुआं बदहवासी
बदहाली पे रोना आया।
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पानी ने रूप प्रलय का लिया
हर इक प्राणी है थर्राया
बेबसों की बहती लाशें देख
बर्बादी पे रोना आया।
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सरहद पर रोज की गोली बारी
बदला ले तो रहीं नित फौज हमारी
फिर भी दुश्मन की मक्कारी
से छलनी होते हमारे सपूतों की
शहादत पे रोना आया।
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प्रशासन की कमजोरी हो
या लापरवाही किसी की भी
रेलों की दुर्घटनाओं में निर्दोषों की
जानें गई तो रोना आया।
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किन कष्टों से होता है जन्म
क्या है मांँ बाप के लिए बच्चा।
यह दर्द कोई न जान सका
आक्सीजन की कमी का दिया गच्चा
बेईमानी पे रोना आया।
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जो जीवन रक्षक होते हैं
उनअस्पतालों में ही
मृत होते गए बच्चों के मांँ बापों के
दर्दीले जज्बात पे रोना आया।
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इस सिरे से लेकर दूसरा सिरा
चहुंओर से देश कष्टों से घिरा
सियासी तलवारें करें तेरा मेरा
एकजुटता और अंदरुनी एकता के
निकले जनाजे पे रोना आया।
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अब तो ये हाल है मित्रों
कि देश के बिगड़े हालात पे रोना आया।
हर किसी के हरेक जज़्बात पे रोना आया।
–रंजना माथुर दिनांक 02/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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