*रोते बूढ़े ( कुंडलिया )*
रोते बूढ़े ( कुंडलिया )
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रोते बूढ़े कर रहे , यौवन के दिन याद
हुए रिटायर हो गए , खाली उसके बाद
खाली उसके बाद ,कमर फिर झुकती जाती
करें हाथ कम काम ,उपेक्षा सदा सताती
कहते रवि कविराय , देह का बोझा ढोते
तकिए गीले रोज , कभी दिन ही में रोते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451