रोटी (ग़ज़ल)
सबको ही कब मुहाल है रोटी
ख्वाब सा भी खयाल है रोटी
उँगलियों पर नचाती है सबको
लगती भी कोतवाल है रोटी
चाँद तारे भी दिन में दिख जाते
चलती ऐसी भी चाल है रोटी
ये किसी को नसीब होती यूँ
नोंच ही लेती खाल है रोटी
‘पूछ लो ये गरीब के दिल से
कितना मुश्किल सवाल है रोटी
प्यार करता इसे ये जग सारा
‘अर्चना’ बेमिसाल है रोटी
02-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता