रैन बसेरा
दर-दर की धूल न फांक
फकीरा
दर-दर की धूल न फांक
थोड़ा मन के भीतर झांक
कबीरा
ज़रा दिल के अंदर झांक…
(१)
काहे बना फिरता हरजाई
तेरे जीवन भर की कमाई
केवल एक मुट्ठी राख
फकीरा
केवल एक मुट्ठी ख़ाक
थोड़ा मन के भीतर झांक
कबीरा
ज़रा दिल के अंदर झांक…
(२)
तब क्या बरत-क्या तीरथ रे
तब क्या लगन-क्या मुहूरत रे
जब जाना मूर्दा घाट
फकीरा
जब जाना मूर्दा घाट
थोड़ा मन के भीतर झांक
कबीरा
ज़रा दिल के अंदर झांक…
(३)
कौन अपना और कौन बेगाना
ये दुनिया एक मुसाफिरखाना
छूट जाएगा सारा ठाट
फकीरा
छूट जाएगा सारा ठाट
थोड़ा मन के भीतर झांक
कबीरा
ज़रा दिल के अंदर झांक…
#Lyricist
Shekhar Chandra Mitra
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