रेणुजी से भी आगे कई
किसी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती, बावजूद फलाँ पिता पर गया है, तो फलाँ माँ पर गयी है, ऐसा कहा जाता है ! यह दीगर बात है, अभिषेक बच्चन की अदा न माँ पर गया, न अमिताभ बच्चन पर ! बावजूद अभिषेक की फ़िल्म ‘गुरु’ देखिए, वे अमिताभ से आगे दिखते प्रतीत होते हैं !
यह नितांत मेरे विचार हैं । इसलिए तो कोई किसी से आगे व बहुत-आगे क्यों नहीं हो सकते हैं ! अगर ऐसा नहीं होगा, तो कहावत- ‘गुरु गुड़, चेला चीनी’ की रचना होती ही क्यों ? बताते चलूँ कि रेणुजी ‘महाकवि’ नहीं थे । उनकी महानता आँचलिक उपन्यास और कहानियाँ में आकर सधी ! वे न तो कथासम्राट थे, न ही उपन्याससम्राट!
हाँ, हिंदी में सीमांचली भाषाओं को पिरोकर रेणुजी ने एक अलग मार्ग को प्रशस्त किया, यह दीगर बात है, महाप्राण निरालाजी की कविताओं को पहले-पहल प्रकाशकगण छापते ही नहीं थे, इस भाँति रेणु की कहानियाँ भी रिजेक्ट होती रही !
लेकिन ऐसा नहीं है कि रेणु और निराला से आगे कोई नहीं हुए ! यह सिर्फ आपकी एकल भक्ति ही कही जाएगी ! रेणु से भी आगे निकल गए शैलेश मटियानी, हिमांशु जोशी आदि को पढ़िये, तो वहीं निराला, धूमिल आदि से भी आगे निकल गए कवि सिर्फ ‘पंकज चौधरी’ को ही पढ़ लीजिए, किंतु सीमित ज्ञान से बचिए !