रूपसी
10. रूपसी
रूपवती के सजल नयन दृश
हुलसित होता हृदय हमारा ।
अरुणोदय की प्रखर रश्मियाँ
ज्यों चमकें संग गंगा धारा ।।
पलकों का उठना फिर गिरना
फिर उठना फिर फिर गिर जाना ।
मतवाले भौंरों का जैसे
कलियों पर पल पल मॅडराना ।।
सघन मेघ सम केश राशि ज्यों
लहराती है पयोधरों पर ।
मतवाली नागिन बलखाती
ज्यों पय पीकर घट भर भर कर ।।
केश राशि के मध्य चमकती
मॉग शीश पर ऐसी सजती ।
तपोवनों के बीच बह रही
नदी एक बलखाती लगती ।।
कमल पंक्ति से होंठ कॉपते
लरज लरज, हिल हिल मिल जाते ।
अस्ताचल के पार क्षितिज पर
ज्यों पृथ्वी आकाश समाते ।।
दुग्ध धवल सी दंत पंक्ति की
पल पल ऐसी छटा बिखरती ।
मणिमाला संग कमल पुष्प हो
झूम रहा कर के मदमस्ती ।।
लरज रही बलखाती ऐसी
कंचन कटि कामिनी तुम्हारी ।
रिमझिम सावन की फुहार में
ज्यों तड़पे दामिनी बिचारी ।।
नज़रों के मिलने से धड़कन का
बढ़ना , बढ़कर रुक जाना ।
चाँद देख पूरनमासी का
ज्यों उछाल लहरों में आना ।।
रुनझुन-रुनझुन, छम-छम-छम-छम
पायल गाती गीत |
लगता जैसे कहे रूपसी
गले लगा लो मीत ।।
*********
प्रकाश चंद्र ,लखनऊ
IRPS (Retd)