रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ🌹
🌹सबसूं प्यारौ सबसूं न्यांरों,
रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ🌹
मरुधरा मन मोवणीं, रंगीले रजथांन में
अंजस म्हाने है अणुंतौ, इण धरा संतान म्है।
जालोरी री जबरी धर पर, वसियौ हैं आ गांवड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।1।।
सब समाजा रिळमिल रेवे, भाईचारा री भीतड़ली
ऊंच नीच नही आंगणे, सांची कहु म्हे बातड़ली।
मनवांर घणी मेहमांणा ने, बिछावे पलक पावड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।2।।
बरसाळै री बरखा बरसे, मरुधरा मुळकावे है
खेत खळां तो खिलवां लागे, फसलां जद लहरावै हैं।
सियाळै में ठरे सांतरो , उन्हांळा मांय तावड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।3।।
केर फोग ओर खेजड़ी, लो’रा मांयनै बावळियां
आक लीलगरी नीबड़ां, मीठा पिलूं री जाळकियां।
टाबर खावै घणा चाव सूं, बोर पाकै जद बोरड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।4।।
मूंग मोठ ने तिल बाजरी, नीपजै घणोह ग्वार
जीरो रायड़ौ ओर अरंडी, गौधन सारू ज्वार।
करसो प्रभातां खेता जावै, कांधै धरने कवाड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।5।।
परदेसां परवास कियो, पण हरदम हिवड़ै बस रयौ
महिमां मांडै जीतू हरख सूं, चितर चित में छप गयो।
ओळ्यूं सतावैं अंतस में, जरणी बिन नह आवड़ियौ
सबसूं प्यारौ सबसूं न्यारो, रूड़ौ म्हारो गांव धुम्बड़ियौ।।6।।
रचनाकार:- जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया..✍️