रुलाती है बेटियां
पीहर कभी ससुराल सजाती है बेटियां ।
दोनों कुलों का मान बढ़ाती है बेटियां ।
होती है बिदाई तो रुलाती है बेटियां ।
बाबुल का अरमान सजाती है बेटियां ।
इनके बिना अधूरी हर घर में रौशनी
चराग अंधेरों में जलाती है बेटियां ।
मत जुल्म करों दान की सूली पे चढ़ाओ,
हर वंश की बेला को बढ़ाती है बेटियां
बन कल्पना लक्ष्मी सुधा वसुंधरा ममता,
हो जिस रूप में दुनिया को बनाती है बेटियां ।
अहिल्या बनी सीता बनी द्रौपदी उर्मिला,
हर किरदार तहेदिल से निभाती है बेटियां ।
ये फूल जहां में यूँही खिलता रहे सदा,
दुआ बनके फरिश्तों की आती है बेटियां ।
स्वाति सोनी ‘मानसी’