” ———————————————— रिश्ते ऐसे बुनते ” !!
दाना कोई चुगाते हैं यहां , कोई दाना चुनते !
खेल चुगाना चुगना जानो , जाल सदा यों बुनते !!
नेता और फरेबी बैठे , मुट्ठी बांध यहां पर !
अवसर चूक कहीं ना जाएं , लागे इसी लगन से !!
प्यार अगर है हमें बांटना , एक दूजे के हो लें !
अपने में मदहोश रहे तो , रह जाएं सिर धुनते !!
मिलना जुलना खुशी बढ़ाता , गति देता जीवन को !
मुस्कानों का हो बंटवारा , रिश्ते ऐसे बुनते !!
सेवा और सहयोग करें तो , मन भाता संतोष !
बार बार चाहत की कलरव , मौन भाव से सुनते !!
मौन निमंत्रण नेह का ऐसा , आकर्षण में बांधे !
इसिलए अनजान ये रिश्ते , बार बार हम चुनते !!
कुछ तुम पाओ कुछ पाएं हम , मिलता रहे बराबर !
बना रहे यह मौन सन्तुलन , इतना तो हम गुनते !!
हम उड़ान भरना अब सीखें , तुम सीखो मुस्काना !
देख देख कर लोग हमें अब , यों ही जलते भुनते !!
बृज व्यास