राष्ट्रीय जिजाऊ गीत
राष्ट्रीय जिजाऊ गीत
हसनैन आक़िब
शतः शतः उसे प्रणाम…..
जिजाऊ की जय के नारे
आओ लगाएं मिल कर सारे
आकाश भरे धरती भर जाये
फैलें उस की मातृत्व क साये
राष्ट्रमाता का है ये नाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
मावल गढ़ के बहादुरों को
शिवराय के सब यारों को
संस्कारों से जिस ने अपने
दिखलाये स्वराज के सपने
दिए समय को नए जो आयाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
घायल कोई अन्य हुआ है
वीर मराठा धन्य हुआ है
शिव राजे की जननी माता
जिस के गीत इतिहास है गाता
उस के चरणों में चारों धाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शिव राया को उपहार दिए
पुरखों के सब संस्कार दिए
नैतिकता का पाठ पढ़ाया
जीना मरना भी सिखलाया
जिस ने जगाया था शिव संग्राम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
होती अगर ना जीजा माई
गोद वो होती ना अँगनाई
शिवा जिस में कुंदन बन कर
दमके , महके चन्दन बन कर
गोद को ऐसी क्या दू मैं नाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शब्दों में कहना मुश्किल है
गवाह जिस का बस ये दिल है
फ़र्ज़ है मुझ पर उस का सम्मान
राष्ट्र पे जिस का उपकार महान
एक एक बस्ती और एक एक गाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम
शब्द किये जो मैं ने अर्पण
उन में जिजाऊ का दर्शन
सुनो, समझलो, रख कर ये ध्यान
रहे ना ताके कोई अनजान
रंक और राजा, खास-ओ-आम
शतः शतः उसे प्रणाम
शतः शतः उसे प्रणाम