राष्ट्र प्रेम के अवसर
आधुनिकता की चाशनी में लिपटा परिवेश, भौतिकवादी संस्कृति में डूबा देश का जनमानस, पागलपन की हद तक पश्चिमी सभ्यता की नकल आदि। अगर इस समय हम समाज की स्थिति को देखें तो पूरी तरह से बाजारवाद हावी है। न कोई विचार, न कोई चिंतन और न ही मैं से हम होने का सकारात्मक प्रयास। मौजूदा दौर में देश का जनमानस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की जानबूझकर अनदेखी कर रहा है। हालांकि कथित रूप से राष्ट्रवाद के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं।
यदि समाज के किसी भी व्यक्ति से राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों की बात की जाए तो वह सिर्फ इतना जरूर कहता है- “समय आने पर मैं देश के लिए जान भी दे सकता हूं।” अब सवाल यह है कि देश से निष्ठा और प्यार जाहिर करने के लिए क्या जान देना ही जरूरी है? क्या हम देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए देश पर बुरा वक्त आने का इंतजार करें? क्या रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे काम नहीं है, जिन्हें करके हम देश के प्रति कर्तव्य और प्रेम को प्रदर्शित कर सकें?
हकीकत तो यह है कि देश या समाज के प्रति प्यार जताने के लिए खास मौकों की जरूरत नहीं होती। जरूरत है तो सिर्फ सच्चे मन से देश के बारे में सोचने की है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें करके और दूसरों को प्रेरित करके राष्ट्र हित में अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है जो ऐसे काम करते हैं। मिसाल के तौर पर कितने लोग ऐसे हैं जो बिजली, पानी आदि का दुरुपयोग नहीं करते? या लोगों को इनकी बचत के लिए प्रेरित करते हैं? देश के कितने प्रतिशत नागरिक सरकारी संपत्ति का प्रयोग अपनी व्यक्तिगत संपत्ति मानकर करते हैं?
देश के कितने लोग ऐसे हैं जो अपने आसपास होने वाली राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की सूचना पुलिस या प्रशासन को देते हैं?
अगर इन सब सवालों पर गौर करें तो आसानी से सच्चाई सामने आ जाएगी। यहां तक कि अगर किसी को ऐसे कामों को करने के लिए कहा जाए तो उसका जवाब यह होगा कि हमें ही क्या पड़ी है? या फिर यह काम पुलिस-प्रशासन का है। हमें पचड़े में पड़ने की जरूरत नहीं है। हालांकि यह बात भी सही है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसा काम करता है तो उसे गवाही, कोर्ट, कचहरी के चक्कर लगाने के साथ-साथ आर्थिक और मानसिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके बावजूद क्या हमें अपने उत्तरदायित्वों से मुंह मोड़ लेना चाहिए?
मौजूदा दौर के इन हालात के लिए हम से पहले की पीढ़ियों का मौन जिम्मेदार है। हालांकि हमारा मौन और निष्क्रियता निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय कर देगी। हमें उस पीढ़ी के प्रश्नों के उत्तर भी नहीं दे पाएंगे। इसलिए हमारा फर्ज यह बनता है कि हमें अपने वर्तमान के बजाय भविष्य को उज्जवल बनाने की दिशा में सकारात्मक कोशिश करनी चाहिए। जय हिन्द, जय भारत…
© अरशद रसूल