रावण की हार …..
रावण की हार …..
घास फूस का बना लिया
बम पटाखों से सजा दिया
ऐ!मानव तूने कागज का रावण जला दिया।
क्या रावण सा बन पाया तू
उसकी तरह योग कर पाया तू
सिद्ध साधना जितनी उसने की थी
क्या ?उसका एक अंश भी
अपने अंदर भर पाया तू
माना उसने हरण किया था
सीता माँ का!
लेकिन कभी ना छुई
उसकी परछाई।
क्या कर्म तेरे रावण जैसे हैं
तू रावण को जलाता है
फिर मंद मंद मुस्कांता है
रावण में बस एक कमी थी
उसको मारा उसकी” मैं” ने
‘ मैं’ में ही उसकी हार छिपी थी।
हरमिंदर कौर
अमरोहा ,(उत्तर प्रदेश)