#रामानुज
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★ #रामानुज ★
मतिभ्रष्ट और कामी
पिता नृप स्वामी
अवध्य नहीं खलकारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . .
भुवन हिला दूँ
सागर जला दूँ
होवे गिरिशृंग रसातलचारी
सहमति रहे तुम्हारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . .
बिन धीरज धनुर्धर
विकल मन बाण और कर
अन्याय बोझा भारी
धरती काँप रही दुखियारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . .
घायल मन पाँखी
पीड़ा है साखी
समय कुटिल व्यभिचारी
नीति बैठी हारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . .
दीपक कमेरा
उलीचे अँधेरा
बाती सिर अँगियारी
जलती रैना सारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . .
शरण अपनी ले लो
ले लो राम ले लो
अनुज सौमित्र शेषावतारी
शय्या प्रभु मनोहारी
हे दाशरथि ! शरण तुम्हारी . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२