रानी लक्ष्मीबाई का मेरे स्वप्न में आकर मुझे राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करना ……(निबंध) सर्वाधिकार सुरक्षित
सपने हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं जो हमारे उद्देश्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। आज से कुछ दिन पूर्व मैंने एक सपना देखा जिसमें मैंने स्वयं को भारतीय इतिहास की एक महिला योद्धा, रानी लक्ष्मी बाई, के साथ देखा । इसमें भी सबसे मजेदार बात यह थी कि इस सपने में मेरा रानी लक्ष्मी बाई के साथ जिन वर्तमान समस्याओं पर विचार विमर्श हुआ वह मेरे लिए अत्यंत स्मरणीय और प्रेरणास्पद रहा । यह सपना मेरे लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत बना, जिसने मुझे देश की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया।
सच कहूँ तो मैं बचपन से ही ‘रानी मणिकर्णिका’ जिन्हें हम ‘मनु’ या ‘रानी लक्ष्मीबाई’ के नाम से जानते हैं, से प्रभावित रहा हूँ । अपना अंतिम युद्ध उन्होंने ह्यूरोज़ नामक अंग्रेज अधिकारी के साथ किया था जिसमें उन्होने अपने प्राण अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए एक गर्वीली मुस्कान के साथ समर्पित कर दिए थे।
वही ह्यूरोज इस युद्ध के एक वर्ष बाद अपनी आत्मकथा लिखता है और रानी लक्ष्मीबाई के अनूठे युद्ध कौशल और शौर्य का गान करता हुआ कहता है ‘मैंने भारतवर्ष में अपने जीवन काल में रानी लक्ष्मी बाई से बड़ा कोई योद्धा नहीं देखा’ आगे लिखते हुए वह कहता है ‘जो मर्दों में मर्दानी थी वो झांसी वाली रानी थी’। उसकी ये पंक्तियाँ हमारे इतिहास की महाप्राण गौरवगाथा को समझने-समझाने के लिए पर्याप्त हैं ।
मेरे सपने में उन्होंने मेरा नाम पुकारते हुए मुझसे कहा कि मुझे अपने देश की सेवा के लिए दृण निश्चय करते हुए महत्वपूर्ण कार्य करने हैं स्वयं को एक विकसित व्यक्तिव से लबरेज़ एक मानवतावादी और राष्ट्र को समर्पित हृदय वाला व्यक्ति बनाकर राष्ट्र की उन्नति में विशिष्ट भागीदारी निभानी है ।
मैंने महारानी लक्ष्मीबाई से सपने में एक प्रश्न किया कि आज का युवा छोटे-छोटे संकटों से घबरा कर अपने मार्ग को बदल देता है। दुखी होता है और कई बार तो हताशा, निराशा के गर्त में गिरकर अपने समूचे जीवन को नष्ट कर बैठता है । आपको क्या लगता है आज का युवा कैसे स्वयं को इन परिस्थितियों से बचाकर उन्नति के पथ पर बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है ?
मेरा प्रश्न सुनकर वह थोड़ा मुस्कराईं और बोली हमारे समय मंा जीवन जीना इतना आसान नहीं था । लेकिन उस समय के लोगों में एक बात थी कि वह किसी भी परिस्थिति से हार नहीं मानते थे । वे सोचते थे कि भले ही आज परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल न हो लेकिन एक दिन आएगा जब हम अपने जीवन को परतंत्रता के बंधन से मुक्त कर अपनी इच्छानुसार एक श्रेष्ट जीवन जियेंगे ।
यही आस-विश्वास और दृण निश्चय उनमें नवीन ऊर्जा का संचार करता था । आज के समय में यदि युवा इस प्रकार घबराएगा और परिस्थितियों से भागेगा तो वह ना केवल स्वयं को, न केवल अपने परिवार को बल्कि देश की गौरवशाली प्रतिष्ठा को धूमिल करेगा । क्योंकि आज आप स्वतंत्र हैं सारी परिस्थित्तियाँ आपके हाथ में हैं बस आपको उनके साथ तालमेल बिठाना है ।
मैंने उनसे दूसरा प्रश्न पूछा हम आज अपने देश की सेवा कैसे कर सकते हैं ? इसके मान को कैसे बड़ा सकते हैं ?
थोड़ा गंभीर होते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने कहा- हमारे बलिदान का महत्व तब ही है जब आज का देशवासी अपने कर्तव्यों को समझे और पूरी ईमानदारी से उनका निर्वाह करे । यदि आप देश का मान बड़ाना चाहते हैं तो आज समाज में फैले जातीगत भेदभाव, अनेकानेक विषयों पर आधारित अनावश्यक मतभेद , दूषित राजनीति से अपने देश को बचाना है । क्योंकि पूर्व में भी अंग्रजों ने हमारे आपसी मतभदों और जातिगत भेदभावों का लाभ उठाकर हमें परतंत्र बनाया था ।
यदि आज भी हम वही गलती दोहराएंगे तो निश्चित ही हमारे विरोधी इसका लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे । इसके आतिरिक्त देश में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक ,वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ और उच्च पदों से लेकर निम्न पदों पर कार्यरत व्यक्ति जो भी कार्य कर रहा है वह अपने-अपने कार्यों को ईमानदारी देश को समर्पित करके करे तो निश्चित रूप से हमें विश्वगुरु के पद पर आसीन होने से कोई शक्ति रोक नहीं पाएगी ।
आज भी जब में अपने उस स्वप्न के विषय में सोचता हूँ तो मेरा हृदय,मन और बुद्धि उस वीरांगना के लिए नतमस्तक हो जाते हैं एक प्रकार की चेतना का स्पंदन मेरे समस्त शरीर को रोमांचित करता हुआ मुझे उत्साह से भर देता है ।
इस सपने के माध्यम से मेरे मन में देश की सेवा के प्रति एक नई और गहरी भावना उत्पन्न हुई । मैंने यह भी समझा कि हमें अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए, चाहे वो कितने भी कठिन क्यों न हों। मारा हृदय उस महान आत्मा को शत-शत नमन करता है ।