राधेकृष्ण (कविता)
कविता
राधेकृष्ण का जाप करें,
एक नाम दो रूप हैं।
राधा भी तो कृष्ण रूप
कृष्ण ही राधा रूप हैं।
कृष्ण बिन राधा आधी
राधा बिन कृष्ण अधूरे हैं।
राधाकृष्ण के नाम से
परमात्मा स्वयं ही पूरे हैं।
प्रेम भाव से हरि मिलन
सीखलाने दो रूप धारे हैं।
चाहे कहें राधा चाहे कहें कृष्ण
भक्त अंतर न करते हैं।
दोनों का फल एक जान
शंका मन न धरते हैं।
भक्ति मार्ग बताने प्रभु
अर्जुन स्वयं ही बनते हैं।
गीता का उपदेश सुनाकर
जगतगुरू कहलाते हैं।
सच पूछों तो सचराचर
कृष्ण स्वयं ही बनते हैं।
विश्वरूप के दर्शन देकर
सबको अपने में धरते हैं।
इसीलिए तो उपदेश दिया
जग सेवा मेरी सेवा है।
प्रेम स्नेह और आत्मीय भाव
यही कृष्ण की भक्ति है।
सुमिरन करने से प्रभु सदा
सबके संकट हरते है।
राजेश कुमार कौरव सुमित्र