रात्रि के बाद सुबह जरूर होती है
निशा आती है
दिनभर की थकान के बाद
अँधेरा धीरे धीरे घना होता जाता है
पर फिर भी
थके हारे श्रमिक के मन को भाती है
क्योकि
वह दिनभर की थकान को भुला देता है
और
सपनो में खो जाता है
एक सुनहरी नींद के सहारे
उसे रात्रि की कालिमा नज़र नही आती
वरन एक सुखद अहसास के साथ
चन्द्रमा की शीतल चांदनी और
अपने
सुखद भविष्य की तस्वीर नज़र आती है
रात का अँधेरा उन्हीं के लिए अँधेरा है
जो श्रमहीन है और
निठल्ले बैठकर दिन व्यतीत करते है
जिनके लिए सवेरा भी कोई मायने नही रखता
क्योंकि
वह दीनहीन सवेरे का मतलब ही नही जानते
निशा एक दिशा देती है
आदमी के विचारों को और
एक नवीन स्फूर्ति से भरकर
सवेरे उठने की पूर्व तैयारी
निशा में दिवस की आसा छिपी रहती है
जो रोज हमें कहती है कि
रात्रि के बाद सुबह जरूर होती है । ..
..मधुप बैरागी ………