रात्रिचर
रात हो चुकी फिर भी ये पक्षी उङता है कौन ।
अच्छा वोह ये तो उल्लू और चमगादङ है ।
आखिर ये रात मे क्यो उङता है ।
क्या इसको सच मे रात को साफ दिखता है ।
ये रात मे जागकर करता है क्या ।
चलो दोनो का पीछा करू ।
वो उल्लू देखो उङते हुए जाकर तार पर बैठ गया ।
अपने तिखी नजरो से देखता है क्या ।
चमगादङ ये नाचता है क्यों ।
इनके भी जीवन क्या अजीब है ।
बेहद बेतरतीब से है ।
अरे! उल्लू देखो तार से उङा ।
और जाकर उस पेङ पर बैठा ।
अरे! चोच मे पकड़ लिया क्या ।
ये तो कीङा है खाएगा उसको ये क्या ।
हां खा लिया पेट भर लिया मध्यरात्रि हो चुकी ।
जाकर उस पेङ के कोटर मे घूंस गया ।
चमगादङ को देखो ये पत्थर से टकरा रहा नही क्यो ।
ये ऐसी भयावनी आवाज निकाल रहा है क्यूं ।
ये सब लगता है रात्रिचर ।
तभी कर रहे है ये विचरण ।
मै अब चलता हूं सोने ।
इनके लिए चांद सूर्य सा है क्यूं ।
प्रकृति के नियम है बहुरंग ।
कोई है कैसा ।
कोई घूम रहा नंग धङंग ।
?? Rj Anand Prajapati ??