राजनीति
अंग-अंग में भरी कुटिलता, रोम-रोम में मक्कारी।
कोरोना से कहीं भयानक, राजनीति है बीमारी।।
ये लाशों का अम्बार देख खुश, होती है मुस्काती है।
ये रंग बदलती गिरगिट सा, घड़ियाली अश्रु बहाती है।
ये राजनीति है राजनीति करती है काम गजब के ही।
ये गीत सुनाती बहरों को, अंधों को स्वप्न दिखाती है।।
अमन प्रेम की दुश्मन भाईचारे की है हत्यारी।
कोरोना से कहीं भयानक, राजनीति है बीमारी।।
ये देर किये बिन अपनों को आपस में लड़वा देती है।
चूहों के हाथों से शेरों के सीने फड़वा देती है।
ये राजनीति है राजनीति हर चाल अनोखी है इसकी।
ये घूँट दिखाती है मीठा पीने को कड़वा देती है।।
रग रग में है द्वेष कपट छल, बात-बात में गद्दारी।
कोरोना से कहीं भयानक, राजनीति है बीमारी।।
ये लाभ-हानि के पलड़ों में रिश्तों को तोला करती है।
ये फूँक मार कर शबनम की बूँदों को शोला करती है।
ये राजनीति है राजनीति कुछ “दीप” कहे कुछ कर देती।
ये गरल हवाओं में हरदम नफरत का घोला करती है।
इसके आंगन में है चोरों गुंडों की नम्बरदारी।
कोरोना से कहीं भयानक, राजनीति है बीमारी।।
प्रदीप कुमार “दीप”
सम्भल (उ०प्र०)