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22 Mar 2022 · 2 min read

” राजनीति की चाशनी में फीकी मित्रता “

” राजनीति की चाशनी में फीकी मित्रता ”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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उन जमानों से भी होकर हम गुजरे हैं जहाँ मित्रता की संख्यां उँगलियों पर गिनी जाती थीं ! …कुछ मित्र अपने पड़ोस के होते थे !…. किन्हीं का साथ प्राइवेट ट्यूशन का होता था ! …..कई मित्र अपने वर्ग के हो जाते थे !…. किसी का साथ खेल के मैदानों में होता था ! …
एक बात तो बिलकुल स्पष्ट थी कि हमारे विचार उनसे मिलते थे ! सहयोग की भावना हमलोगों में सदा छलकती थी ! पडोसी मित्र का सहयोग दिन और रात का होता था ! प्राइवेट ट्यूशन और क्लास के मित्रों के सहयोग के साथ -साथ प्रतिद्वंदिता की लहर को प्रज्वलित करती थी ! खेल के मैदानों में या इनडोर की चारदीवारी में प्रतियोगिता के साथ -साथ सहयोग की भावना कूट -कूट कर भरी रहती है ! कुछ साथी एक्स्ट्रा कार्रिचुलर के भी मिल जाते हैं !
आपसी ताल मेल ..सामान विचारधारा ..एक दुसरे को सम्मान देना ..और गोपनीयता पर ध्यान देना मित्रता का आधार स्तम्भ माना जाता था !
अब युग बदल गए ! मित्रता की परिभाषा के शब्द ..सीमाएं सीमित ना रहकर सम्पूर्ण विश्व तक अक्षादित ही गए हैं ! इन नए यंत्रों के अविर्भाव से हमारी मित्रता पड़ोस ..वर्ग …खेल कूद ..और ..एक्स्ट्रा कार्रिचुलर एक्टिविटीज तक ही ना सिमट कर रह गयी पर हमारी उडानों ने क्षितिज के छोर को छू लिया ! नए नए असंख्य मित्रों की टोलियाँ बनने लगी !
कई श्रेष्ट व्यक्तिओं का साथ मिला ..कुछ समतुल्य मिले और बहुत सारे कनिष्ठों का आगमन हुआ ! और तो और इन यंत्रों ने तो बिछुड़े हुए दोस्तों से भी मिला दिया ! अधिकांशतः हम इन्हें व्यक्तिगत रूपेण जान नहीं पाते ! मिलना तो प्रायः दुर्लभ है इसलिए इन मित्रता को लोग ” डिजिटल फ्रेंड “कहकर संबोधन करने लगे !
यह प्राकृतिक नियम है कि राजनीति विचारधारा प्रायः -प्रायः सबके भिन्य होती हैं ! अपनी भावना और प्रतिक्रिया को हम भांति -भांति से यदा -कदा प्रस्तुत करते रहते हैं ! सबको अपने विचारों को रखने का अधिकार है ! बस राजनीति के सदर्भ में महाभारत का श्री गणेश तब ही होता है जब किन्ही मित्र के आलेख में प्रतीकात्मक आलोचना उनके टाइम लाइन में करते हैं और उनके कमेंट बोक्सों में !
मित्रों की सूची में यदि हम हैं तो अपनी टाइम लाइन पर अपना तर्क और आलोचना दें ! वाद -विवाद एक कटु आभास का एहसास कराता है ! फिर मित्रता चटकने लगती है ! हमारे विचारों को यदि कोई पढना चाहता है तो पढ़े पर मित्रता में तीखी आलोचनाओं से बचना चाहिए पर अपनी बात अपनी टाइम लाइन पर कहे बिना नहीं रहना चाहिए ! मित्रता इस तरह अक्षुण रहेगी अन्यथा “राजनीति की चाशनी में मित्रता फीकी” पड़ जाती है !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका

Language: Hindi
230 Views
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