राजनीति का सर्कस
राजनीति का सर्कस कुछ समझ में
नहीं आता है,
कभी इस पार्टी से कभी उस पार्टी में
जमूरा खिसक जाता है,
कभी करोड़ों की बोली का है प्रलोभन ,
कभी मंत्री पद का है आश्वासन ,
ईमान और जमीर को दांव पर
लगाने का खेल है ,
जो इस खेल को न जान सका,
वह राजनीति में फेल है,
जनता को मूर्ख बनाना
जिसको आता है ,
वही राजनीति में
सफलता पाता है ,
जोड़ तोड़ की राजनीति का गणित
जो समझ पाता है ,
वही नेता कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा
वाली भानुमति का कुनबा सरकार
बना पाता है ,
भले ही सरकार चले या ना चले,
नेताओं की जेब गर्म होती रहे ,
महंगाई चढ़े ,बेरोजगारी बढ़े,
भ्रष्टाचार फले फूले ,
उससे कोई सरोकार नहीं है,
बस इनकी संपत्ति बढ़ती रहे ,
आज लाखों में, कल करोड़ों में,
फिर अरबों में खेलेंगे,
कब्र में पांव लटके हुए हैं,
फिर भी पद लोलुपता में
कुर्सी नहीं छोड़ेंगे ,
ये सर से पांव तक की भ्रष्टाचार की मूर्ति देश का क्या भला करेंगे ?
इनका बस चले तो अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए देश को भी बेच खाने से न चूकेंगे।