– – रह गया – –
मेरी खातिर आप ने जो कुछ किया,
उस का तो कर्ज ही चुकाना रह गया।
आप ने तो संवारी मेरी जिंदगी,
मुझसे ये फर्ज भी निभाना रह गया।
आप ने कांटे चुने व हमको फूल दिये,
आप के प्यार के आगे कद हमारा बौना रह गया।
आप ही ने दी हमें ये सुंदर दुनिया,
मन हमारा खूबसूरती में इसकी सिमट कर रह गया ।
देने वाले का तो हमने कुछ किया नशुक्रिया,
अपनी दुनिया में ही फिर तो
मन उलझ कर रह गया ।
आप ने बनाया था हमें अपनी जिंदगी,
मेरा मन आप को परे झटक कर रह गया ।
आप के जीवन में छाये हुए थे हम,
वक्त आया तो खुदगर्जी में मेरा जमीर,
आप के स्नेह को भुला कर रह गया ।
आज जब आप मौजूद न हैं इस जहान में,
तो सौ मलालों के साथ माफ़ी मांगने,
की हसरत में हाथ मलता रह गया ।
—रंजना माथुर दिनांक 27/07/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना )
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