रहती कब रजनी सदा, आता निश्चित भोर(कुंडलिया)*
रहती कब रजनी सदा, आता निश्चित भोर(कुंडलिया)
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रहती कब रजनी सदा, आता निश्चित भोर
छँटती है भ्रम की घटा, हो चाहे घनघोर
हो चाहे घनघोर, लोभ के पाँव न टिकते
आती है सद्बुद्धि, सदा ईमान न बिकते
कहते रवि कविराय, समय की धारा कहती
जो लौटा घर शाम, प्रात की भूल न रहती
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रजनी = रात // भोर = सुबह
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451