रवि और कवि
रवि और कवि
में एक समानता है
दोनों जलते हैं
सृजन के लिये।।
असमानता भी
है बस एक
रवि लब्ध है लेकिन
उसके पास शब्द नहीं
कवि पर शब्द हैं मगर
उसके पास लब्ध नहीं।
रवि इतराता नहीं
कवि इतराता है
रवि में मैं नहीं
कवि में मैं है..
सत्य, सनातन, शाश्वत
सूर्य अंधेरा पी जाता है
कवि अंधेरा जी जाता है।
हो न प्रकृति
तो उपमा नहीं
उपमान नहीं।
सृजन दीर्घायु है
चिरायु है…
हम रहे न रहें
सृजन रहता है
कवि हो न हो
सूर्य रहता है।।
शब्द गूँजते हैं।।
सूर्यकान्त