रंग उड़ता है धीरे धीरे
रंग उड़ता है
धीरे धीरे
जल में घुलता है
धीरेे धीरे
समय रहते
कुछ पता नहीं पड़ता
दिल को कुछ समझ नहीं आता
इन चेहरों पर लगी
दो आंखों को भी कुछ नहीं
दिखता
समय के प्रवाह में
कब क्या बह जाता है
कोई आगे बह जाता है
कोई पीछे रह जाता है
एक बार जो छूटे
संग संग बहते हुए जो हाथ
वह तेज बहाव में
खुद के बहते रहने के कारण भी
दिख नहीं पाता है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001