रँगि देतs हमहू के कान्हा
रँगि देतs हमहूँ के कान्हा
अपने भक्ति के प्रीति से
सगरो जग लगे रंगहीन अब
फीका -फीका अब बात -चीत
संघतिया अब केहू न लागे
स्वारथ के कारण बने सब मीत
आजिज आ गइलीं अब हमते
दुनियां के एह रीति से
रँगि देतs हमहूँ के कान्हा
अपने भक्ति के प्रीति से
कारा रंग बा हिय में ज्यादा
उ रक्त नियन भगवा होइ जात
तन -मन पीत नियन पीयर
मन रसराज के अमवा होइ जात
आपन -आन से परे होइ जइतीं
बचि जइतीं कलुष कुरीति से
रँगि देतs हमहूँ के कान्हा
अपने भक्ति के प्रीति से
राधा रानी संग होरी खेलs
ब्रजवासिन के भाग जगावs
दे -द दरस मनोहर छवि के
आशा दे -दे के न बहकावs
दरस देवे में स्वीकार शर्त बा
तुहरे हर एक नीति के
रँगि देतs हमहूँ के कान्हा
अपने भक्ति के प्रीति से
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गोरखपुर, उ. प्र.