योग्यता(व्यंग्य कविता)
राजतंत्र और प्रजातंत्र में
जमीन आसमान सा अंतर।
पर भारत में चल रहा है
समानता का एक मंतर।
पहले राजों की संतानें
राजपाट पद पाते थे।
योग्यता सिर्फ वंशबाद
युगों युगों से चलते थे।
आज भी देखो प्रजातंत्र में
शिक्षा की कोई शर्त नहीं।
धनबल बाहुबल ही प्रमुख
पढ़ा लिखा आवश्यक नहीं।
पढ़े लिखे सब नौकर चाकर
अनपढ़ हो सकते नेता जी।
सबके लिए निर्धारित पढ़ाई
राजनेताओं को छूँट है जी।
इस का ही लाभ उठाकर
पढ़े लिखे चालक अफ्सर।
नेता जी की कर खुशामद
भ्रष्टाचार का चलाते चक्कर।
आजादी के सपने देखे
भारत की जनता ने जगकर।
वहीं पढ़ लिख बेरोजगार हैं
झुझला रहे हैं अपने पर ।