योगपथ
जीवन में जब अति होते भोग,
काम क्रोध मद के लगते रोग,
ईर्ष्या स्वार्थ कटुता का हो बोल,
मार्ग सिर्फ एक रह जाता योग ।
सृष्टि के अंगो का हो विच्छेदन,
विसर्जन को तत्पर हो विप्लवन,
समय टूटा हो रुक जाए सृजन,
मार्ग सिर्फ एक रह जाता योग ।
मंजिल मिले ना फैला हो तिमिर,
कदम बढ़े नहीं दिखे नहीं डगर,
ऐसे भटके हो भूल भुलैया सफर,
मार्ग सिर्फ एक रह जाता योग ।
हो नशा इतना जकड़ जाए मन,
लड़खड़ाते पद बिखर जाए तन,
औषधियां असर कम दिखाएं,
मार्ग सिर्फ एक रह जाता योग ।
धरती पर हो अन्याय घनघोर ,
रुक जाए संवाद युद्ध चहुंओर,
बचाएं कैसे वसुधैव कुटुंबकम,
मार्ग सिर्फ एक रह जाता योग ।
(कवि- डॉ शिव लहरी)