ये ही रामराज तो नहीं
राहत मिलेगी सबको मगर आज तो नहीं
जनता को लूटने का ये अंदाज तो नहीं
कैसी ये सिसकियाँ हैं ये कैसा है शोरगुल
चिड़ियों के सर पे बैठा कोई बाज तो नहीं
घुट-घुट के ही रह जाती है सीने में बारहाँ
सहमे हुए लोगों की ये आवाज तो नहीं
पिंजरे के परिंदों ने ये सैय्याद से कहा
पर ही कटे हैं पर कटी परवाज तो नहीं
बीयर पिला रही है सियासत भी शान से
दौलत की वंदना में कहीं ताज तो नहीं
हत्या, डकैती, चोरी, बलत्कार, रहजनी
कलयुग में कहीं ये ही रामराज तो नहीं
उल्लू ही उल्लू बैठे हैं हर ओर शाख पर
‘संजय’ सुनहरे कल का ये आगाज तो नहीं