ये मौन अगर…….! ! !
23. ये मौन अगर ….. ! ! !
ये मौन अगर मुखरित होता तो बात पुरानी बन जाती ।
तेरे होंठों की हलचल से एक नई कहानी बन जाती ।।
ये मौन अगर मुखरित होता हर श्वांस दिवानी बन जाती ।
मदभरी मलय के झोंकों से हर शाम सुहानी बन जाती ।।
ये मौन अगर मुखरित होता हर बूँद समंदर बन जाती ।
चिंगारी दावानल होती, हर लहर सुनामी बन जाती ।।
ये मौन अगर मुखरित होता, हर स्वप्न विखंडित ना होता ।
हर वाणी अटल सबल होती राजीव पंक में खिल जाता ।। ,
ये मौन अगर मुखरित होता ये भेद भाव ना हो पाता ।
यूँ ऊँच नीच के झगड़ों में ये देश टूटने ना पाता ।।
ये मौन अगर मुखरित होता और जोश जवानी का होता ।
तो सोचो यारों आज देश अपना किस हालत में होता ।।
अब तो इसको मुखरित कर दो तोड़ो सारे कारा तम के ।
अब जागो उठो लड़ो यम से और छोड़ो बंधन संयम के ।।
अबकी सोये तो नहीं सवेरा फिर से आने वाला है ।
ये मौन अगर अब ना टूटा तो देश न बचने वाला है ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS , (Retd)