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1 Dec 2016 · 1 min read

ये मात्र लेखनी नहीं

ये मात्र लेखनी नहीं

एक तुला है न्याय की ये मात्र लेखनी नहीं
अपने और पराये को कभी भी देखती नहीं
युगों युगों से बनती आई सत्य की आवाज़ ये
लिखते समय सत्य जो जरा भी झेंपती नहीं

वो कलम नहीं जिसका लेख ही मुखर न हो
दुसरो की वेदनाओं पर कोई नज़र न हो
मुश्किलों के सामने जो पीछे खींच ले कदम
व्यर्थ है वो बात जिसका दूर तक असर न हो

जो कलम न कर सके बेबसों की पैरवी
अनीतियों पे जिसका ये खून खोलता नहीं
दासी बनके जो , रोज महलो की फिकर करे
ऐसी लेखनी का मुख , सत्य बोलता नहीं

सुन्दर सिंह
29.11.2016

Language: Hindi
253 Views
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