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30 Sep 2024 · 1 min read

ये बेसबरियाँ मेरे से झेली नहीं जाती,

ये बेसबरियाँ मेरे से झेली नहीं जाती,
खुदगरज़ी ये जो तेरी है सही नहीं जाती।
महफ़िलों में एक सपना देखा था,
क्या वो सच नहीं बन सकता,
बाधाओं को खुद रोकता टोकता मेरे करीब नहीं आ सकता।
नयन मेरे सूखने के कगार पर हैं,
अब थोड़ी खुशी देने की किसी में नहीं है क्षमता।
प्राणप्याला तो अब तोड़ ही दो ।
बेवफाई तो अब उम्मीद बन चुकी है,
मुस्कराने की उम्मीद पता नहीं कहा छुपी है ।
ग़म मेरे गुनगुनाने लगे हैं,
हर तकलीफ प्रसन्नता से मुस्कराने लगे हैं।
मेरी क्रोधाग्नि मुझे भस्म करने चली है ।
लालिमा मन की तो कब ही चली गयी थी,
अब बस इस ज़ालिम दुनिया की बेहयायी मुझे अपने बाहों में लिए रुकी है।

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