ये बन्धन अब मुझको स्वीकार नहीं.!!
मत रोक मुझे भयभीत न कर,मैं सदा कंटीली राह चला.!
मेरे पथ के पतझड़ों में ही नव-नूतन मधुभास पला.!!
मैं हूँ अबाध,अविराम,अथक,अविचल आशुतोष.!
हैं..राह रोकते ये बन्धन अब मुझको स्वीकार नहीं.!!
दोनों ही ओर निमंत्रण है-इस पार मुझे,उस पार मुझे.!
स्वर्णिम विजय सी लगती है,संघर्षों में हर हार मुझे.!!
मैं हूँ अपने मन का राज़ा, इस पार रहूँ,उस पार चलूँ.!
जी चाहे जीतूँ-दुनियाँ!उनकी खुशियों के लिए मैं,हार चलूँ.!!
मेरी पतवारों पर साथी!लहरों की घात नहीं चलती.!
मेरी तो आदत ही ऐसी-सँघर्षों बीच मैं हर बार चलूँ.!!
अब कँहा झुका पाएगा यह विप्लवमय पारावार मुझे.!
इन लहरों के टकराने पर आता है,रह-रहकर प्यार मुझे.!!
✍? आशुतोष शुक्ला