ये खेत
ये खेत ही तो है, जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते ।
सुबह हो या फिर शाम , हर पल रहा इन से गहरा नाता,
जब खेतों में हल थे चलाते,
नीलू-बोलू फिर हल खूब थे भगाते,
इसी भागमभाग में, हल एक खेत से दुसरे खेत में थे पहुँचा जाते,
खेत जोताई की दौड़ में,हल फिर पापा तुरंत थे थाम जाते,
ये खेत ही तो है ,जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते ।
जब हम पापा को पास न पाते,
उदासी के बादल कुछ पल गहरा जाते,
मैं फूलों की तरह खिला रहूँ,वो अक्सर मुझे अपने पास बुलाते,
बैठा कर मई पर , फिर खेतों में खूब थे घुमा जाते,
नीलू-बोलू की पूंछ पकड़वा कर,
छुक-छुक रेल की सीटी फिर खूूब थे बजवा जाते,
ये खेत ही तो है जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते ।
कभी गेहूँ की बाली, कभी धान की पराली , मकई की हरियाली और जब होती तपती धूप तब आम की छाया में, तनिक आराम फरमाते दिख जाते,
ये खेत ही तो है जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते ।
कभी घास की ढेरी पर,कभी जंगल से सलीपर ढोने की फेरी पर और जब होती सांझ ,
उड़ती गोधुली के बीच, पशु घर लाते वो अक्सर दिख जाते
ये खेत ही तो है जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते ।
जब मैं स्कूल से आता,रोटी को फिर तुरंत झपट जाता,टोकरी खाली पाने पर , अम्मा के पास न होने पर ,
तब पापा मकई की रोटी पका कर, तुुरंंत मुझे खिलाते अक्सर दिख जाते ,
ये खेत ही तो है जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते।
अब उमर के इस पडाव में ,
सूरज की सुनहरी किरणों से, सिर्फ मेरे वास्ते,
आसमां से है उतरआते,
धुंधला जाये गर आँखें मेरी, तब कभी वो सपनो में, कभी खेत में मेरी राहआसान कर अक्सर अपलक औझल हो जाते ,
ये खेत ही तो है जो मुझे मेरे पापा से मिला जाते।
लेख राज ‘माही’ 9418071740
मई-खेत को समतल करने वाली चौरस बजन में भारी लकड़ी ।