ये कैसा मौसम आया
ये कैसा मौसम आया ,
कैसी हवा चल रही
दीये तो दीये सायक
दिलों की लौ बुझ रही ।
नफरत के बीज पनप रहे
सम्बन्धों की जड़ें हिल रहीं
धर्म जाति के वृक्ष तले
खुलेआम महफिलें खिल रहीं ।
लहू गर्म हो गया है इतना
अस्मत दिन ब दिन लुट रही
न्यायालय सूखा कुआँ हुआ
प्यास नही अब यहाँ बुझ रही
ये कैसा मौसम आया
कैसी हवा चल रही
दीये तो दीये सायक
दिलों की लौ बुझ रही ।
-जय श्री सैनी ‘सायक’