यूँ सफ़र पूरा कहाँ होता है अब
यूँ सफ़र पूरा कहाँ होता है अब
बीच में ही दिल कहीं रोता है अब
हुस्न को फ़ुरसत कहाँ बेचैन हो
चैन तो आशिक़ फ़क़त खोता है अब
बाँटता फिरता था गुल दुनिया में जो
राह में काँटे वो क्यों बोता है अब
क्यूँ शिकायत थी मुझे तक़दीर से
खेल सारा उसका ही होता है अब
मौत का आना हुआ लाज़िम तो बस
दे उसे होने कि जो होता है अब