यूँ इतरा के चलना…..
२०. गजल – यूँ इतरा के…..
यूँ इतरा के चलना यूँ शरमा के जाना ,
यूँ सीने से पल्लू गिरा के उठाना ।
तेरी इस अदा पे कहूँ क्या मैं जानम,
मेरे दिल का सीने से रिश्ता छुड़ाना ।।
यूँ इतरा के चलना ……
रुपट्टे का तेरे यूँ छू कर निकलना,
मेरी जान का जिस्म से छूट जाना ।
यूँ होंठों के कोनों का हिल कर सिहरना ,
ज्यों शबनम की बूँदों का कलियों से झरना ।
यूँ इतरा के चलना …….
यूँ जुल्फों में तेरी वो गुल का सजाना ,
कि भँवरे का अपना चमन भूल जाना ।
पलक का ठहरना अलक का लहरना ,
खुदाया रहम कर यूँ ढाओ कहर ना ।
यूँ इतरा के चलना …….
हया से कपोलों का यूँ सुर्ख होना ,
ज्यों पूनम की रातों में कलियों का सोना ।
वे सॉसों की खुशबू वो दिल का धड़कना ,
वे नाज़ो अदा से नज़र का फिसलना ।
यूँ इतरा के चलना …….
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)